प्रयागराज, 01 फरवरी (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कानून से निहित अधिकार भूतलक्षी कानून से छीना नहीं जा सकता। सहायक अध्यापक की सेवानिवृत्ति के समय तदर्थ सेवाओं को पेंशन निर्धारण के लिए क्वालीफाइंग सेवा में शामिल करने का नियम रहा है तो बाद में नियम संशोधित कर पूर्व की अवधि से लागू करने के कारण इस अधिकार को छीना नहीं जा सकता।
कोर्ट ने तदर्थ सेवा जोड़कर सेवानिवृत्त सहायक अध्यापक के पेंशन निर्धारित करने के एकलपीठ के आदेश को सही माना और राज्य सरकार की विशेष अपील खारिज कर दी है।
कोर्ट ने परिवीक्षा अवधि के बाद निरंतर सेवा करने के बाद सेवानिवृत्त अध्यापक को स्थाई अध्यापक न मानने के राज्य सरकार के तर्क को भी अस्वीकार कर दिया। सरकार की तरफ से कहा गया कि याची विपक्षी की नियमित की गई सेवा स्थाई नहीं की गई थी। इसलिए अस्थाई अध्यापक को पेंशन पाने का अधिकार नहीं है। जिसे कोर्ट ने नहीं माना। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति एस क्यू एच रिजवी की खंडपीठ ने राज्य सरकार की एकलपीठ के फैसले के खिलाफ दाखिल विशेष अपील को खारिज करते हुए दिया है।
मालूम हो कि याची विपक्षी महेश चंद्र शर्मा की किसान इंटर कालेज तहापुर अमरोहा में अंशकालिक रिक्त पद पर तदर्थ रूप में नियुक्ति 14 जनवरी 93 को की गई। बाद में अक्टूबर 16 के आदेश से 22 मार्च 16 से संयुक्त शिक्षा निदेशक मुरादाबाद द्वारा नियमित कर दिया गया और वह 31 मार्च 20 को सेवानिवृत्त हो गया। पेंशन निर्धारित करने के लिए याची की तदर्थ सेवा जोड़ने की मांग अस्वीकार कर दी गई। हाईकोर्ट ने इस आदेश को रद्द कर तदर्थ सेवा जोड़कर पेंशन निर्धारित करने का निर्देश दिया। जिसे चुनौती दी गई थी। याची विपक्षी अधिवक्ता का कहना था कि सरकार अपने कानून व नियम को मानने के लिए बाध्य है। भूतलक्षी कानून से विधिक अधिकार नहीं छीने जा सकते।