Wednesday , 4 December 2024

राजस्थान के स्कूलों में नही हुई मां सरस्वती की मूर्ति तो होगी कार्रवाई ? स्कूलों के लिए सरकार ने लागू किया ड़्रेस कोड

जयपुर के गंगापोल इलाके में स्थित एक सरकारी स्कूल में हिजाब (Hijab) को लेकर उपजे विवाद ने शिक्षा और धार्मिक पहचान (Religious Identity) के बीच के संबंधों को एक नई दिशा दी है। स्कूली छात्राओं द्वारा उठाए गए इस मुद्दे ने न केवल शिक्षा जगत में बल्कि समाज में भी व्यापक चर्चा को जन्म दिया है। 

जयपुर के इस विवाद ने न सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि समाज में भी धार्मिक पहचान (Religious Identity) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Freedom) के मुद्दे को उठाया है। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा के प्रांगण में विविधता (Diversity) और समावेशिता (Inclusivity) को बनाए रखने की चुनौती हमेशा बनी रहेगी।

आगे चलकर, स्कूलों में ड्रेस कोड और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है, ताकि शिक्षा का माहौल सौहार्दपूर्ण (Harmonious) और निष्पक्ष (Unbiased) बना रहे।

स्कूल में ड्रेस कोड की परिकल्पना

राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर (Madan Dilawar) ने हाल ही में घोषणा की है कि स्कूलों में एक निर्धारित ड्रेस कोड (Dress Code) लागू किया जाएगा। उनका मानना है कि इससे स्कूलों में एकरूपता और अनुशासन (Discipline) कायम होगा।

इसके अलावा, शिक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि सरस्वती मां (Goddess Saraswati) की मूर्ति या चित्र न होने वाले स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

विधायक के बयान पर छात्राओं का विरोध

विधायक बालमुकुंद आचार्य (Balmukund Acharya) ने एनुअल फंक्शन (Annual Function) के मौके पर स्कूल में हिजाब को लेकर जो बयान दिया, उस पर छात्राओं ने तीव्र विरोध प्रकट किया।

छात्राओं का कहना था कि धार्मिक नारे (Religious Slogans) और हिजाब पर विधायक की टिप्पणी उन्हें स्वीकार्य नहीं है। इस घटना ने धार्मिक स्वतंत्रता (Religious Freedom) और शिक्षा के अधिकार के बीच की रेखा को और भी जटिल बना दिया है।

विधायक की स्पष्टीकरण और राजनीतिक प्रतिक्रिया

विधायक बालमुकुंद आचार्य ने अपने बयान के संदर्भ में कहा कि उन्होंने सिर्फ यह सुझाव दिया था कि अगर सभी छात्र अलग-अलग वेशभूषा (Attire) में स्कूल आएंगे तो यह अनुशासनहीनता (Indiscipline) को जन्म देगा।

हालांकि, इस बयान को लेकर कुछ राजनीतिक समूहों (Political Groups) ने विरोध जताया है और इसे धार्मिक असहिष्णुता (Religious Intolerance) के रूप में देखा जा रहा है।

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