लखनऊ, 21 फरवरी (हि.स.)। सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में पादप वर्गीकरण एवं जैव वर्गिकी की पारंपरिक एवं आधुनिक पद्धतियों पर प्रशिक्षण की शुरुआत हुई।
इस प्रशिक्षण में कर्नाटक, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, असम, केरल आदि विभिन्न प्रदेश के प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं। इस अवसर पर इंसा के विशिष्ट वैज्ञानिक डॉ.आर.आर.राव उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
डा.आर.आर.राव ने कहा कि अत्यधिक महत्व होने के बाद भी वर्गिकी की विधा को आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। धीरे-धीरे इसकी भूमिका पादप अन्य पादप विज्ञान क्षेत्रों को सहयोग प्रदान करने भर की रह गयी है। इस स्थिति के पीछे जो महत्वपूर्ण कारण है। उनमें से प्रमुख हैं- वर्गिकी परियोजनाओं को वित्तीय सहयोग में कमी आना, काॅलेजों एवं विश्वविद्यालयों में वर्गिकी के विशेषज्ञों की कमी के कारण इस विषय को गैर विशेषज्ञों द्वारा पढ़ाया जाना, वर्गिकी के शोध पत्रों को उच्च इम्पैक्ट फैक्टर जर्नलों में स्वीकार न किया जाना एवं शोधार्थियों आदि द्वारा इस विधा में रुझान कम होना। उन्होंने ऐसी स्थिति में इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल दिया।
कार्यक्रम के संयोजक एवं संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ विजय विष्णु वाघ ने बताया कि देश में वर्गिकी के विशेषज्ञों की घटती संख्या एवं वर्गिकी के क्षेत्र में नई प्रौद्योगिकी के प्रयोग की आवश्यकता को देखते हुए इस कार्यक्रम की संकल्पना की गयी। इससे भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए वर्गिकी के विशेषज्ञों को तैयार किया जा सके। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में 16 महिलाओं और 17 पुरुषों सहित 31 प्रतिभागी भाग ले रहे हैं, जिनमें से अधिकांश महाराष्ट्र,असम एवं कर्नाटक से हैं।
डॉ एस.के. तिवारी ने कहा कि ऐसा माना जाता है कि वर्गिकी एक मृतप्राय विधा है किंतु एनबीआरआई में विभिन्न क्षेत्रों के वैज्ञानिक आपस में मिलकर कार्य करते हैं,जिससे वर्गिकी को भी समर्थन मिलता है। उन्होंने कहा कि वर्गिकी की महत्ता अभी भी है,क्योंकि किसी भी पादप पर किसी भी प्रकार के अध्ययन के लिए उसकी सही पहचान करना सबसे पहला काम होता है और इसलिए वर्गिकी का जीवंत रहना आवश्यक है। प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन 27 फरवरी को किया जायेगा।