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स्वयं को गौरवपूर्ण समझकर दूसरों को हीनभावना से नहीं देखता भारत : मिथिलेशनंदिनी शरण

वाराणसी,16 फरवरी (हि.स.)। हनुमत निवास अयोध्या के पीठाधीश्वर डॉ. मिथिलेश नंदिनी शरण ने कहा कि काशी शब्दोत्सव एक संगोष्ठी नहीं, राष्ट्र सनातन की अवधारणा है।

उन्होंने कहा कि भारतीय चिंतन परम्परा का मानक बिंदुओं को तय करने में काशी का विशेष योगदान है। काशी साधक को साधना मार्ग ही नहीं बताती बल्कि मोक्ष मार्ग तक पहुंचने का संयोजन भी करती है। काशी ने शब्द मात्र से मुक्ति देने की गारंटी ली। भगवान शिव इस भारत के आदिपुरुष हैं।

उन्होंने कहा कि भारत विश्वगुरू है इसका अभिप्राय यह है कि भारत विश्व में गुरु है विश्व का गुरु नहीं है। भारत विश्व गुरु इसलिए है क्योंकि भारत स्वयं को गौरवपूर्ण समझकर दूसरों को हीनभावना से नहीं देखता।

आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण चार दिवसीय काशी शब्दोत्सव-2024 में दूसरे दिन शुक्रवार को ‘रामराज्य:विकसित भारत’ विषयक गोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के गांधी अध्ययनपीठ सभागार में विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग और विश्व संवाद केंद्र काशी की पहल पर आयोजित गोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता पीठाधीश्वर डॉ. मिथिलेश नंदिनी शरण ने कार्यक्रम की सराहना कर कहा कि आज दुनिया के अन्दर कुंठा और अवसाद बड़ी तेजी से बढ़ रहा है जो सोचनीय है। इसके लिए भारत को आगे आकर काम करने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि विश्व के अन्य देशों को भी भारत जैसे धार्मिक भावबोध पर काम करना होगा। जब तक यह अशेष विश्व परमात्मा को अपने अंदर विद्यमान नहीं करेगा। तब तक वह कुंठित रहेगा। निष्पक्ष बात तब पूर्ण होती है जब वेद, पुराण एवं संतों से भी मत लिया जाए। जिन्हें उजाले की ओर जाना है उन्हें पूर्व दिशा में देखना होगा।

कार्यक्रम में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो.अनूप वशिष्ठ ने कहा कि हमें यशस्वी बनना है तो हमें अपनी परम्परा को समझना होगा। हमारी जड़ें तभी मजबूत होंगी जब हम अपनी परंपराओं से जुड़ेंगे। उसके लिए हमें राम को जानना होगा और कृष्ण को पहचानना होगा। उन्होंने कहा कि राम का रामत्व हमें समता मूलक समाज को स्थापित करने के लिए निरन्तर प्रेरित करता है। शब्दों का स्वर जितना सारगर्भित होगा उतना ही व्यक्ति और समाज लाभान्वित होगा।

प्रो.वशिष्ठ ने कहा कि राम आदर्शो की उच्चतम बिंदु के प्रतिपालक है और समदर्शी भी है। आज भारतीय मूल्यों की जब भी चर्चा होगी तब दुनिया में तो राम ही उच्चतम मान बिंदु होगें।

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकर पुरी ने भगवान राम के बाल्यकाल में काकभुशुण्डि लीला का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि प्रभु राम की बाल्यावस्था से लेकर युवावस्था के कई लीलाओं के भावबोध को आज समाज में प्रस्तुत करने की खास तौर पर आवश्यकता है। आज मानव मूल्य और विचार को हम तभी आगे बढ़ा सकते हैं जब भगवान श्री राम के आदर्शों को आत्मसात करें।

कार्यक्रम में स्वागत भाषण प्रो.राजेश मिश्र, संचालन प्रो.अंबरीश राय एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो.सर्वनाद ने किया। चर्चा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्वी यूपी के सह प्रचार प्रमुख मनोजकांत,डा.राकेश तिवारी,कार्यक्रम के संयोजक डॉ हरेन्द्र राय,प्रो.ओमप्रकाश सिंह,प्रो.रजनीश शुक्ल, डॉ ज्ञान प्रकाश मिश्र,डॉ अमित उपाध्याय,डॉ हेमंत सिंह,डॉ अशोक ज्योति,डॉ सत्यप्रकाश पाल,डॉ आशीष,डॉ पतंजलि पांडेय सहित विभागों के विभागाध्यक्ष,प्रोफेसर एवं विद्यार्थी मौजूद रहे। विद्यार्थियों ने अपनी जिज्ञासाओं के समाधान के लिए आचार्य मिथिलेश नंदिनीशरण महाराज से सवाल भी किया।

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