हवाई जहाजों (Airplanes) में बाईं ओर से बोर्डिंग (Boarding) कराने की प्रक्रिया आज से नहीं बल्कि पुराने समय से चली आ रही है। इस प्रक्रिया का मुख्य कारण समुद्री जहाजों (Maritime Ships) से उत्पन्न परंपराओं से जुड़ा हुआ है। लेकिन, इसके अलावा भी इस प्रक्रिया के पीछे कुछ तकनीकी और व्यावहारिक कारण हैं।
हवाई जहाजों में बाईं ओर से बोर्डिंग कराने की प्रथा न केवल एक पारंपरिक (Traditional) अवधारणा है, बल्कि इसमें व्यावहारिकता (Practicality) का भी मिश्रण है। यह परंपरा और प्रयोगशीलता का संतुलन (Balance) हमें एविएशन क्षेत्र की गहराई और उसके विकास की जानकारी देता है।
ग्राउंड क्रू के काम और उनकी रफ्तार से जुड़ी हुई व्यावहारिकता
एक प्रमुख कारण यह है कि प्लेन (Plane) में ईंधन (Fuel) भरने और यात्रियों का सामान (Luggage) चढ़ाने का काम अधिकतर दायीं ओर से किया जाता है। इसलिए, यात्रियों को बाईं ओर से चढ़ाने से ग्राउंड क्रू के काम में कोई रुकावट नहीं होती और सभी काम तेजी से और बिना रुकावट के हो जाते हैं।
समुद्री प्रथाओं से आई विमान चढ़ाई की परंपरा
समुद्री जहाजों में बायीं ओर को ‘पोर्ट’ (Port) और दाहिनी ओर को ‘स्टारबोर्ड’ (Starboard) कहा जाता है। इस परंपरा का प्रभाव एविएशन सेक्टर (Aviation Sector) में भी पड़ा। इसीलिए आज भी यात्री बायीं ओर से ही विमान में चढ़ते हैं।
पायलट के लिए सहूलियत और समय की बचत
विमान के कॉकपिट (Cockpit) में पायलट (Pilot) बायीं सीट पर बैठता है। बोर्डिंग बाईं ओर से होने की वजह से, पायलट के लिए टर्मिनल बिल्डिंग (Terminal Building) से विंगटिप क्लीयरेंस (Wingtip Clearance) का अनुमान लगाना आसान होता है। इसके अलावा, आगे से बोर्डिंग कराना समय की बचत (Time Saving) से भी जुड़ा है।