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डॉ. सुनील विश्वकर्मा को मिला पद्मश्री बाबा योगेंद्र कला पुरस्कार, बधाई का दौर

वाराणसी,27 जनवरी (हि.स.)। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के ललित कला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सुनील विश्वकर्मा को पद्मश्री बाबा योगेंद्र 2024 कला पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। गणतंत्र दिवस पर राजभवन लखनऊ में प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने डॉ. सुनील विश्वकर्मा को पुरस्कार प्रदान किया। डॉ. विश्वकर्मा ने रामनगरी अयोध्या में जन्मस्थान पर भगवान राम के मंदिर में स्थापित श्री रामलला के मूर्ति की कृति बनाई है। शनिवार को ललित कला विभाग के छात्रों के साथ साथी आचार्यों,युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भी डॉ. सुनील विश्वकर्मा के उपलब्धि पर खुशी जताने के साथ उन्हें बधाई दी। युवा कांग्रेस के जिलाध्यक्ष अधिवक्ता विकास सिंह ने काशी विद्यापीठ के छात्र नेताओं विश्वनाथ कुंवर,विजय उपाध्याय,आशुतोष सिंह, दिलीप कुमार,संदीप पाल,कवि चौहान, राजकुमार मिश्रा, प्रिंस राय के साथ डॉ. विश्वकर्मा को बधाई दी और अंगवस्त्रम व स्मृति चिन्ह भी दिया।

इस दौरान विकास सिंह ने कहा की विश्व पटल पर काशी की इस प्रतिभा को बड़ा सम्मान मिला है। डॉ. विश्वकर्मा के इस योगदान की जितनी सराहना की जाए, वह कम है। विकास सिंह ने कहा कि काशी में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। बस जरूरत है, उनकी प्रतिभाओं को पहचानने और उसे आगे बढ़ाने की। मूल रूप से मऊ जिले के कोपागंज नगर पंचायत निवासी और काशी विद्यापीठ के ललित कला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सुनील विश्वकर्मा की बनाई हुई कलाकृति ने अयोध्या में राममंदिर में स्थापित प्रभु श्रीराम के बाल स्वरूप की मूर्ति का आकार लिया है। बताते चले अयोध्या में प्रभु श्रीराम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा काशी के वेदमूर्तियों ने की तो इस विग्रह के स्वरूप की कल्पना भी काशी के ही एक कलाकार डॉ. सुनील विश्वकर्मा ने की है। इस कलाकार के बनाए चित्र को ही मूर्तिकारों ने विग्रह रूप दिया। जिसके बाद कर्नाटक के अरुण योगीराज की बनाई प्रतिमा को चुना गया। डॉ. सुनील विश्वकर्मा के अनुसार फरवरी.2023 से इसकी तैयारियां शुरू हुई थीं। देशभर के 82 नामी-गिरामी चित्रकारों से पांच वर्ष के रामलला का चित्र मांगा गया था। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट की तरफ से इनमें से अंतिम तीन चित्रों का चुनाव किया गया। उनके ( सुनील कुमार विश्वकर्मा ) द्वारा बनाए स्केच के अलावा महाराष्ट्र और पुणे के दो अन्य वरिष्ठ कलाकारों के स्केच शामिल थे। डॉ. विश्वकर्मा ने बताया कि 15 से 20 अप्रैल के बीच उन्हें अन्य दोनों कलाकारों के साथ नई दिल्ली बुलाया गया। जहां उनके चित्र को चुना गया।

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