प्रयागराज, 29 जनवरी (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिन्दू-मुस्लिम जोड़ों द्वारा सुरक्षा की मांग वाली याचिकाओं पर राहत देने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि जोड़ों की शादियां उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने मुरादाबाद सहित अन्य जिलों की याचियों की ओर दाखिल याचिका को खारिज करते हुए दिया है। जोड़ों ने अलग-अलग याचिकाओं के माध्यम से अपनी सुरक्षा और अपने वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप न करने के निर्देश के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट ने आदेश में कहा कि ये अंतरधार्मिक विवाह के मामले थे लेकिन ये विवाह स्वयं कानून के अनुरूप नहीं थे। इन विवाहों में धर्मांतरण विरोधी कानून का पालन नहीं किया गया।
हालांकि, कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी जोड़ा है कि यदि याचियों द्वारा कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद विवाह किया जाता है तो वे नए सिरे से सुरक्षा की मांग वाली याचिका दाखिल कर सकते हैं।
2021 में पारित धर्मांतरण विरोधी कानून गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और प्रलोभन द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में गैरकानूनी रूपांतरण पर रोक लगाता है। हाईकोर्ट जिन आठ याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, उसमें पांच मुस्लिम युवकों ने हिन्दू महिलाओं से और तीन हिन्दू युवकों ने मुस्लिम महिलाओं से शादी की थी। कोर्ट ने आदेश में याचिकाकर्ताओं के धर्म का उल्लेख किया।
बता दें कि यूपी सहित मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश राज्यों द्वारा अधिनियमित धर्मांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लम्बित हैं।