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मथुरा में भगवान श्री कृष्ण विराजमान के मुकदमो की सुनवाई 22 फरवरी को

प्रयागराज, 30 जनवरी (हि.स.)। मथुरा भगवान श्रीकृष्ण विराजमान कटरा केशव देव व 7 अन्य की तरफ से दाखिल सिविल वाद की पोषणीयता को लेकर शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी व सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से सीपीसी आदेश 7 नियम 11 में दाखिल अर्जी की इलाहाबाद हाईकोर्ट 22 फरवरी को साढ़े ग्यारह बजे से सुनवाई करेगी।

मंदिर पक्ष के अधिवक्ता ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए आदेश 1 नियम 8 के तहत दाखिल अर्जी दोबारा दाखिल करने की छूट के साथ वापस लेने की मांग की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर ली है। अधिवक्ता ने वाद की पोषणीयता पर मस्जिद पक्ष की आपत्ति सहित सभी वादों की एकीकृत सुनवाई के आदेश की वापसी अर्जी व पक्षकार बनाने की अन्य अर्जियों के साथ नियमानुसार सुनवाई करने की मांग की, ताकि मूल वाद की सुनवाई आसान हो सके।

कोर्ट ने दोनों पक्षों को एक दूसरे के जवाबी हलफनामे पर आपत्ति/प्रति जवाब दाखिल करने का समय निश्चित करते हुए कहा है कि आगे समय नहीं दिया जायेगा। इस सिविल वाद की सुनवाई 22 फरवरी को होगी। भगवान श्रीकृष्ण (ठाकुर केशव देवजी महाराज) विराजमान सिविल वाद संख्या 17/23 की प्रार्थना संशोधित करने की अर्जी कोर्ट ने मंजूर कर ली और आदेश 1 नियम 8 की अर्जी पर विरोधी पक्ष से आपत्ति मांगी है। इस वाद की सुनवाई 22 फरवरी को होगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति मयंक जैन ने दिया है। वादों पर मंदिर पक्ष की तरफ से अधिवक्ता प्रभाष पांडेय, प्रदीप शर्मा, हरिशंकर जैन, टीना एन. सिंह, महेंद्र प्रताप सिंह, अजय कुमार सिंह व तेजस सिंह, मस्जिद पक्ष की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता वजाहत हुसैन, बोर्ड के अधिवक्ता पुनीत गुप्ता ने पक्ष रखा।

सुनवाई शुरू होते ही न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष गोयल व आकांक्षा शर्मा ने वाद की पोषणीयता की प्रारम्भिक आपत्ति अर्जी की वैधानिकता तय करने की मांग की और कहा कि सभी वादों को कंसोलिडेटेड करने के बाद भी सभी पक्षकार जिस तरह से अर्जियां दाखिल कर पक्ष रख रहे हैं, उससे मूल वाद की सुनवाई हो पाना कठिन है। मूल वांद भगवान श्रीकृष्ण विराजमान का है, जो देवता हैं। उनका विधिक व्यक्तित्व है। इसलिए कोर्ट उनका संरक्षक नियुक्त कर वाद की सुनवाई करे।

गोयल ने कहा कि ऐसा करने का कोर्ट को पूरा अख्तियार है। यह वादी व कोर्ट के बीच का मामला है। विरोधी पक्ष को कोई सरोकार नहीं है। अदालत अपने विवेक से किसी को भी वादी भगवान का संरक्षक नियुक्त कर सकती है। गोयल ने कहा कि वह सिविल वाद का शीघ्र निराकरण चाहते हैं। इस तरह से सभी वादों में अर्जियां दायर कर सुनवाई होती रही तो मूल वाद की सुनवाई शुरू नहीं हो सकेगी। हालांकि कुछ वादियों के वकीलों ने आपत्ति की और कहा कि किसे संरक्षक नियुक्त किया जायेगा, उसका नाम जानने का सभी को अधिकार है। मस्जिद कमेटी के अधिवक्ता ने कहा कि उन्हें भी आपत्ति दाखिल कर सुनवाई का कानूनी अधिकार है।

कोर्ट ने कहा कि 13 वादों की प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत पोषणीयता पर आदेश 7 नियम 11 की अर्जी दी गई है। जिसमें सिविल वाद निरस्त करने की मांग की गई है। अन्य चार वादों की पोषणीयता पर आपत्ति नहीं की गई है। कोर्ट ने मस्जिद पक्ष को 13 फरवरी तक का समय दिया है और कहा है कि आगे समय नहीं दिया जायेगा।

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