गोरखपुर से आजमगढ़ होते हुए वाराणसी के लिए रेल खंड (Railway Line) की मांग वर्षों से की जा रही थी। 1956 में सांसद कालिका सिंह की पहल पर इस रेल ट्रैक के लिए सर्वे (Survey) का आयोजन किया गया, लेकिन विभिन्न कारणों से यह कार्य अधूरा रह गया। इस रेल लाइन का न होना इलाके के विकास (Development) पर भारी पड़ रहा था।
उद्योगों पर प्रभाव
रेल सुविधा के अभाव में आजमगढ़ और आसपास के क्षेत्रों के उद्योग (Industries) पिछड़ गए हैं। खासकर, मुबारकपुर का रेशम उद्योग (Silk Industry), निजामाबाद की ब्लैक पॉटरी (Black Pottery), रानी की सराय और अतरौलिया क्षेत्र का जूट उद्योग (Jute Industry) इसके प्रमुख उदाहरण हैं। ये उद्योग बाजार तक पहुंच और बेहतर आवागमन (Transportation) की कमी से जूझ रहे हैं।
लोगों की दुश्वारियां और उद्योगों का बंद होना
लालगंज समेत आसपास के लोगों को महानगरों (Metropolitan Cities) में जाने के लिए वाराणसी या आजमगढ़ की लंबी यात्रा करनी पड़ती है। इससे न सिर्फ यात्रा में असुविधा (Inconvenience) होती है, बल्कि कई बार तो उद्योगों को बंद भी करना पड़ा है। नए बजट (Budget) में इस रेल खंड के लिए शासन से मंजूरी मिलने की उम्मीदें जगी हैं।
बजट आवंटन और भविष्य की उम्मीदें
रिपोर्ट के अनुसार, वाराणसी से गोरखपुर के बीच बिछाई जाने वाली इस रेल लाइन (Rail Line) से करीब 500 गांव लाभान्वित होंगे। रेलवे की पिंक बुक (Pink Book) के मुताबिक, इस परियोजना के लिए वित्तीय आवंटन (Financial Allocation) किया गया है। इस वित्तीय वर्ष में एक करोड़ रुपये और अगले वित्तीय वर्ष में एक करोड़ 27 लाख रुपये खर्च होने की संभावना है।
उम्मीदों का नया सवेरा
केंद्र सरकार (Central Government) द्वारा इस परियोजना के लिए आवश्यक बजट का आवंटन और इसके लिए सर्वे (Survey) की तेजी से उम्मीदें जगी हैं। यह रेल लाइन न सिर्फ आवागमन को सुगम बनाएगी।
बल्कि स्थानीय उद्योगों के विकास (Industry Development) में भी सहायक होगी। इससे क्षेत्र की आर्थिक स्थिति (Economic Condition) में सुधार और सामाजिक उन्नति (Social Progress) की उम्मीद बढ़ी है।