लखनऊ, 16 फरवरी (हि.स.)। सिकुड़ता समय क्षेत्र व्यवधानों को बढ़ावा दे रहा है, जिससे त्वरित गति से पांचवीं औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हो रही है। यह बातें अंतर विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र (आईयूएसी) के निदेशक प्रोफेसर अविनाश चंद्र पांडे कही।
विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान और लखनऊ विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अखिल भारतीय संस्थागत नेतृत्व समागम में अंतर विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र (आईयूएसी) के निदेशक प्रोफेसर अविनाश चंद्र पांडे ने शुक्रवार को अनुसंधान और विकास के उभरते समय पर भी प्रकाश डाला।
मध्य प्रदेश निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के अध्यक्ष प्रो.भरत शरण सिंह ने एनईपी 2020 और ‘भारत 2047: विजन विकसित भारत’ के संदर्भ में बहु-विषयक शिक्षा पर सबका ध्यान केंद्रित किया। प्रो.सिंह ने रचनात्मक विषय चयन,व्यावसायिक पाठ्यक्रम और एकाधिक प्रवेश और निकास विकल्पों के साथ एक समग्र,लचीले पाठ्यक्रम की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
प्रोफेसर सिंह ने तुलसीदास की शिक्षाओं का उदाहरण देते हुए इस बात पर जोर दिया कि प्राचीन भारतीय शिक्षा स्वाभाविक रूप से बहु-विषयक थी, जिसमें क्षेत्रीय भाषाएं भी शामिल थीं। फ्लेम यूनिवर्सिटी के प्रो.युगांक गोयल ने कहा कि जहां हमारी सांस्कृतिक विरासत ने बहु-विषयक शिक्षा को अपनाया, वहीं विश्वविद्यालयों के गठन के दौरान पश्चिमी शिक्षण विधियों को अपनाने से बदलाव आया।
आईआईएम बैंगलोर के प्रोफेसर एम जयदेव ने एनईपी और मान्यता प्रणाली से संबंधित प्रश्न पूछकर विश्वविद्यालय और संस्थान के नेताओं के बीच चर्चा शुरू की। शिक्षा प्रणाली की परिणाम-आधारित प्रकृति पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने पदों के मूल्यांकन के लिए नियमित मूल्यांकन की आवश्यकता पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि आश्चर्यजनक रूप से, 1168 विश्वविद्यालयों में से केवल 40 प्रतिशत ने मान्यता मांगी है, जिनमें से 75 प्रतिशत के पास वैध ग्रेड हैं। प्रस्तावित बाइनरी मान्यता प्रणाली का उद्देश्य नैक को प्रतिस्थापित करना है, जिससे एचईआई को ग्रेडिंग प्रणाली को छोड़कर मान्यता प्राप्त या गैर-मान्यता प्राप्त के रूप में चिह्नित किया जा सके।
समस्याएं शीर्ष प्रबंधन से होती है उत्पन्न
आईआईएम नागपुर के निदेशक प्रोफेसर भीमरया मेत्री ने कहा कि 85 प्रतिशत गुणवत्ता संबंधी समस्याएं शीर्ष प्रबंधन से उत्पन्न होती हैं। यहां तक कि इंफोसिस जैसे उद्योग के दिग्गजों ने भी उत्कृष्टता की पहचान को लागू किया है। मान्यता प्रक्रिया में प्रत्येक चरण पर स्तरों में क्रमिक वृद्धि देखी जानी चाहिए, परिपक्वता स्तर पांच पर वैश्विक मान्यता प्राप्त की जाएगी। अच्छे संस्थानों को प्रत्येक वर्ष वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए पांच वर्षों के लिए रैंकिंग प्राप्त होगी।
शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तियों को उनकी कमियों से मुक्त करना
एनआईआईटी भोपाल के निदेशक प्रोफेसर केके शुक्ला ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तियों को उनकी कमियों से मुक्त करना है। तीसरे समानांतर सत्र में, जो शिक्षा के लिए शोध और नवाचार पर केंद्रित था।
सत्र का अंतिम व्याख्यान प्रोफेसर रमेश चंद्र असम के देका, कॉटन यूनिवर्सिटी के कुलपति ने दिया। प्रोफेसर देका ने भारतीय सांस्कृतिक जोर को रोकथाम पर और पश्चिमी चिकित्सा मॉडल के बीमारी के बाद उपचार पर केंद्रित दृष्टिकोण के विपरीत दिखाया। उन्होंने बहुविषयक अनुसंधान के महत्व की वकालत की। देका ने जोर दिया कि भारतीयों को अनुयायियों से नवप्रवर्तकों में परिवर्तन करना चाहिए। अपनी बुद्धिमत्ता और रचनात्मकता का उपयोग समस्या समाधान अनुसंधान के लिए करना चाहिए।
देसी भाषाओं के वैश्विक महत्व पर जोर
आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर अविनाश अग्रवाल प्रोफेसर अग्रवाल ने देसी भाषाओं के वैश्विक महत्व को उजागर किया। इग्नू के कुलपति प्रोफेसर नागेश्वर राव ने आवश्यक सुधारों पर अंतर्दृष्टि साझा की तथा परीक्षा और पाठ्यपुस्तकों में क्षेत्रीय भाषा की उपलब्धता की वकालत की।
क्षेत्रीय भाषाओं को आकांक्षी बनाने की आवश्यकता
प्रोफेसर बद्री नारायण तिवारी ने क्षेत्रीय भाषाओं को आकांक्षी बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं में अच्छी तरह से अनुसंधानित पाठ्यपुस्तकों के लिए विद्वानों को लगाने का प्रस्ताव रखा और लेखन और प्रकाशन में बढ़ी हुई जागरूकता और भागीदारी के लिए आह्वान किया।