प्रयागराज, 23 फरवरी (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तीन प्रोफसर्स के खिलाफ आपराधिक याचिका को स्वीकार करने के साथ ही भारतीय न्याय व्यवस्था पर भी गम्भीर टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था निरर्थक मुकदमेबाजी से बुरी तरह ग्रस्त है। इसे रोकने के लिए तरीकों और साधनों को विकसित करने की आवश्यकता है।
कोर्ट ने कहा कि कई शताब्दियों तक भारतीय समाज ने जीवन के दो आधार मूल्यों अर्थात् सत्य और अहिंसा को पोषित किया। महावीर, गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी ने लोगों को इन मूल्यों को अपने दैनिक जीवन में अपनाने के लिए मार्गदर्शन किया। सत्य न्याय-वितरण प्रणाली का एक अभिन्न अंग था जो स्वतंत्रता पूर्व युग में प्रचलित था और लोग परिणामों की परवाह किए बिना अदालतों में सच बोलने में गर्व महसूस करते थे।
हालांकि, स्वतंत्रता के बाद की अवधि में हमारी मूल्य प्रणाली में भारी बदलाव आया। भौतिकवाद ने पुराने लोकाचार को खत्म कर दिया है और व्यक्तिगत लाभ के लिए लोग मुकदमेबाजी में शामिल होकर झूठ, गलत बयानी और तथ्यों को दबाने का सहारा लेने में संकोच नहीं कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने और देश की दूसरी उच्च न्यायालयों ने कई बार ठोस निर्णय दिए हैं। मौजूदा मामला भी कानून की प्रक्रिया का पूरी तरह से दुरुपयोग है।
शिकायतकर्ता ने प्रोफेसर्स के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने के लिए, झूठे और तुच्छ मामले दर्ज करके उन्हें और उनके सहयोगियों को फंसाने की कोशिश की थी। जब भी विभागाध्यक्ष उसे ठीक से पढ़ाने और नियमित रूप से कक्षाएं लेने के लिए कहते, तो वह उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करा देती। यह कोई पहला मामला नहीं है जो घटित हुआ हो। शिकायतकर्ता, जो एक सुशिक्षित महिला है, कानून के प्रावधानों को अच्छी तरह से जानती है और वह व्यक्तिगत लाभ के लिए कानून के प्रावधानों का दुरुपयोग कर रही थी।
शिकायतकर्ता द्वारा दायर की गई शिकायत कुछ और नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया का शुद्ध दुरुपयोग थी। शिकायतकर्ता के कार्य से प्रोफेसर्स की सार्वजनिक छवि खराब हुई। उन्हें अपने को बचाने के लिए दर-दर भटकना पड़ा।