Monday , 25 November 2024

एक वक्त ऐसा भी आया जब नीतीश कुमार राजनीति छोड़ ठेकेदार बनना चाहते थे…

बिहार के सीएम के सबसे करीबी ने ‘अकेला आदमी में खोले जीवन के राज

पटना,(ईएमएस)। बिहार के सीएम नीतीश कुमार के बेहद करीबी और उनके साथ कई यात्राओं में उनके साथी और उनकी जीवनी लिखने वाले संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब ‘अकेला आदमी, में नीतीश कुमार जीवन के अच्छे और बुरे क्षणों को अपनी किताब में संजोया है आइए आप को भी नीतीश कुमार के जिंदगी के बारे में बताते हैं।

संकर्षण ठाकुर अपनी कितान में लिखते हैं 2005 से लेकर 2024 तक नीतीश कुमार लगभग बीते दो दशकों से बिहार की सत्ता पर क़ाबिज़ हैं और प्रदेश के मुख्यमंत्री है। इस दौरान वहां विपक्ष बदलता रहा है लेकिन सीएम नीतीश कुमार ही बने रहे। अब फिर इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश एक बार फिर पीएम मोदी से कंधे से कंधा मिलाकार चुनावी महासंग्राम में उतर चुके हैं, लेकिन आपको बता दें कि एक वक्त ऐसा भी आया जब नीतीश राजनीति छोड़कर बिहार में ही सरकारी ठेकेदार बनना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने कोशिशें भी की।

संकर्षण की किताब में लिखा है कि नीतीश कुमार का शुरुआती चुनाव रिकॉर्ड इतना खराब रहा कि उन्होंने राजनीति छोड़ने का इरादा बना लिया, हरनौत की हालत उनकी बर्बादी का कारण बन गई, उनके रिश्तेदार ही चुनाव में एकजुट हो गए थे, नीतीश इस हार से उबर नहीं पाए थे और बिहार में जातीय संघर्ष का दौर शुरू हो चुका था।

1977 में पटना से चंद किलोमीटर की दूरी पर बेलछी गांव में नरसंहार हो गया जिसकी तपिश दिल्ली तक पहुंच गई। ये हिंसा कुर्मी-कोइरी और उस समय के दुसाध वर्ग के बीच में हुई थी। नीतीश कुमार ने उस दौरान हिंसा की वजह से कुर्मियों का प्रतिनिधित्व करने से इनकार कर दिया जिसका ख़ामियाज़ा उन्हें 1980 में हुए विधानसभा चुनाव भुगतना पड़ा। नीतीश कुमार को फिर से हार का मुंह देखना पड़ा जबकि इसी चुनाव में लालू यादव ने सोनपुर सीट से जीत हासिल की थी।

संकर्षण की किताब में लिखा है कि तीन सालों में लगातार दूसरी हार से नीतीश कुमार बुरी तरह टूट गए और कुछ ही दिनों बाद उन्होंने राजनीति छोड़ने का ऐलान कर दिया। नीतीश बिहार की राजनीति छोड़कर सरकारी ठेकेदार बनना चाहते थे। किताब के मुताबिक़ नीतीश ने उस वक्त कहा कि कुछ तो करें, ऐसे जीवन कैसे चलेगा। उन्होंने उसके लिए कोशिश भी शुरू कर दी थी।

चंद्रशेखर ने फिर चमका दी राजनीति
संकर्षण ठाकुर की किताब में लिखा है कि किसी तरह तीन साल का समय बीत गया और नीतीश कुमार अपने भविष्य की तलाश करते रहे। साल 1983 में नीतीश कुमार ने मथुरा में उस वक़्त के कद्दावर नेता चंद्रशेखर की बहुचर्चित भारत यात्रा के अंतिम चरण में शामिल हुए और अपनी बातों से चंद्रशेखर को प्रभावित कर लिया फिर क्या था चंद्रशेखर ने उन्हें सहायता और राजनीतिक संरक्षण देने का वादा कर लिया। चंद्रशेखर के वादे के बाद एक बार फिर नीतीश कुमार अपने राजनीतिक कैरियर को लेकर उत्साहित हो गए। चंद्रशेखर ने उन्हें हर कदम पर सहयोग दिया। नीतीश कुमार ने इस दौरान आदर्शवाद को छोड़कर राजनीति के यथार्थ और समय की ज़रूरत को समझा और उसी तरह की राजनीति करने लगे। यही वजह है कि आज भी नीतीश बिहार ही नहीं देश की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं और सालों से बिहार के सीएम पद पर रहकर अपने काम को अंजाम दे रहे हैं।

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