-पीड़ित अक्सर भ्रम जैसी स्थिति के होते हैं शिकार
नई दिल्ली । स्किजोफ्रेनिया एक ऐसी गंभीर मानसिक बीमारी है, जिससे पीड़ित लोगों को अक्सर भ्रम जैसी स्थिति होती है। इस गंभीर बीमारी से दुनियाभर में लगभग 20 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हैं।
इस बीमारी से ग्रसित लोगों को मतिभ्रम, भ्रम, अव्यवस्थित विचार जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। एक्सपर्ट के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य हम सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। दुर्भाग्य से कई मिथक और अनावश्यक जानकारी के कारण इस समस्या को और बढ़ा दिया गया है। ऐसे में लोग कई बार अपनी बीमारी को पहचानने में देर कर देते हैं। इसी भ्रम में परिवार इस बीमारी को समझने में सक्षम नहीं हो पाते। स्किजोफ्रेनिया एक तरह की मानसिक बीमारी है जिसके कई तरह के उपप्रकार हैं। इस बीमारी में दो तरह के लक्षणों को देखा जाता है।पहले लक्षणों में व्यक्ति को ऐसी चीजें दिखाई या सुनाई देती हैं,जो दूसरे नहीं देख या सुन पाते। जिसमें मतिभ्रम या भ्रम जैसी स्थिति होती है। इसके दूसरे लक्षणों में व्यक्ति खुद को बाकी दुनिया से कटा हुआ महसूस करता है और सामाजिक रूप से अलग-थलग हो जाता है।
विशेषज्ञ की मानें तो जेनेटिक्स के साथ पर्यावरणीय कारक भी स्किजोफ्रेनिया बीमारी के लिए जिम्मेदार हैं। स्किज़ोफ्रेनिया या संबंधित विकारों का एक मजबूत पारिवारिक इतिहास है। हम यह भी देखते हैं कि इसमें कुछ विशेषकर औषधियों के दुरुपयोग की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। जो मस्तिष्क के कुछ क्षेत्रों में डोपामाइन प्रवाह को बढ़ा सकती है। खराब जीवनशैली और अपर्याप्त पोषण भी स्किजोफ्रेनिया का खतरा बढ़ा सकता है। जो लोग खराब आहार, व्यायाम की कमी, मादक द्रव्यों का सेवन और अपर्याप्त नींद जैसी अस्वास्थ्यकर आदतों में शामिल होते हैं उनमें मानसिक स्वास्थ्य विकारों का खतरा अधिक होता है।एक्सपर्ट ने यह भी बताया कि विशेष रूप से आवश्यक फैटी एसिड विटामिन और खनिजों में पोषक तत्वों की कमी मस्तिष्क के कार्य को खराब कर सकती है और स्किजोफ्रेनिया के लिए आनुवंशिक प्रवृत्ति को बढ़ा सकती है। इसके अलावा दीर्घकालिक तनाव और अस्वास्थ्यकर जीवनशैली भी इसके पीछे प्रमुख कारण हो सकते हैं।
इसके लिए संतुलित आहार, नियमित शारीरिक गतिविधि, पर्याप्त नींद और जोखिम को कम करने और समग्र मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की सलाह दी है। विश्व स्किजोफ्रेनिया दिवस पर मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों से जूझ रहे लोगों के लिए विशेषज्ञों ने कहा है कि समय पर इसकी पहचान, उचित उपचार के साथ बेहतर पोषण और व्यायाम इससे बाहर आने में मदद कर सकते हैं।