कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि मां अपने बेटे की संपत्ति (Son’s Property) में हिस्सा पाने की हकदार है। यह मामला तब उठा जब एक मां ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया।
कर्नाटक हाईकोर्ट का यह फैसला मां के अधिकारों को सुनिश्चित करता है और बताता है कि उत्तराधिकार के मामलों में माताओं को भी उचित हक मिलना चाहिए। यह फैसला समाज में न्याय की भावना को मजबूत करता है और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है।
मां का हक और सत्र न्यायाधीश का फैसला
सत्र न्यायाधीश (Session Judge) ने मां के बेटे की मृत्यु के बाद उनके संपत्ति में हिस्से के अधिकार को वंचित कर दिया था। इस परिस्थिति में, उच्च न्यायालय की एकल-न्यायाधीश पीठ (Single-Judge Bench) में न्यायमूर्ति एचपी संदेश (Justice HP Sandesh) ने सुनवाई की और कहा कि मां भी मृत बेटे की संपत्ति में प्रथम श्रेणी की उत्तराधिकारी (First Class Heir) होती है।
संपत्ति में मां का हक और प्रतिवादियों की दलीलें
जब मां सुशीलम्मा (Sushilamma) को उनके बेटे संतोष (Santosh) की संपत्ति में हिस्सा दिया गया, तब तक उनके बेटे की मृत्यु हो चुकी थी। प्रतिवादियों के वकीलों ने सत्र न्यायालय के फैसले का बचाव किया, लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया और सुशीलम्मा को उत्तराधिकारी माना।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और मां का हक
हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) के तहत मां भी संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार होती है। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भी हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम-2005 के तहत बेटियों को पिता की संपत्ति में समान अधिकार देने का महत्वपूर्ण आदेश दिया था।